Ram Mandir Ayodhya: 22 जनवरी को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होनी है। इसको लेकर जो अनुष्ठान है वह 16 जनवरी से ही शुरू हो चुकी है। आज इस वक्त की बड़ी खबर यह है कि गर्भगृह के आसन पर रामलाल की प्रतिमा को स्थापित कर दिया गया है। विधि विधान से यह प्रतिमा स्थापित की गई है। इस पूरी प्रक्रिया में 4 घंटे से ज्यादा का वक्त लगा। सुबह लगभग 11:00 के आसपास यह प्रक्रिया शुरू हुई थी। 22 तारीख को प्राण प्रतिष्ठा होगी। यह मूर्ति पूरी तरीके से ढकी हुई है। हालांकि मूर्ति को आसन पर पहुंचा दिया गया है।
Ram Mandir Ayodhya
प्रतिमा को 21 जनवरी तक जीवनदायी तत्वों से सुवासित कराया जाएगा, जिसका क्रम गुरुवार से प्रारंभ हो गया। गर्भगृह में भगवान चल के साथ अचल स्वरूप में भी विराजमान होंगे। दोनों प्रतिमाएं बुधवार को ही परिसर में पहुंच चुकी थीं। श्यामवर्णी अचल प्रतिमा दोपहर साढ़े 12 बजे गर्भगृह में स्थापना की गई। इसी के साथ दोनों ही प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा का संस्कार आरंभ हो गया।
करीब 20 प्रकार के पूजन के उपरांत गुरुवार को भगवान के अधिवास का क्रम आरंभ हुआ, जिसकी शुरुआत वेदमंत्रों के उच्चारण से मंगलमयी हुए वातावरण में यजमान डा. अनिल मिश्र व उनकी पत्नी ऊषा मिश्र ने शुभ मुहूर्त दोपहर एक बज कर 20 मिनट पर संकल्प से की।
सुबह नौ बजे अरणि मंथन से प्रकट होगी अग्नि
#RamMandir is not just a mere religious building, it's an emotion… It's a result of 500 years+ long Tapasya….
Just see how an old man got emotional after getting Holy Ram Akshat as part of #RamMandirPranPratishta invitation.. ❤️ pic.twitter.com/94XqHuR5pw
— Mr Sinha (@MrSinha_) January 18, 2024
शुक्रवार को करीब 20 संस्कार होंगे। सुबह नौ बजे अरणि मंथन से अग्नि प्रकट की जाएगी। इससे पूर्व गणपति आदि स्थापित देवताओं का पूजन होगा। अरणि मंथन से प्रकट हुई अग्नि की कुंड में स्थापना की जाएगी। वेदपारायण, देवप्रबोधन, औषधाधिवास, केसराधिवास, घृताधिवास, कुंडपूजन, पंच भू संस्कार होगा।
इसके बाद ग्रहस्थापन, असंख्यात रुद्रपीठस्थापन, प्रधान देवता स्थापन, राजाराम-भद्र-श्रीरामयंत्र-बीठदेवता-अंग देवता-आवरण देवता-महापूजा, वारुण मंडल, योगिनी मंडल स्थापन, क्षेत्रपाल मंडल स्थापन, ग्रहहोम, स्थाप्यदेव होम, प्रासाद वास्तु शांति, धान्याधिवास एवं सायंकालिक पूजन एवं आरती होगी।
क्या होता है अधिवास
प्राण प्रतिष्ठा के पहले मूर्तियों का अधिवास कराया जाता है। अनुष्ठान के अनुसार 12 से 18 अधिवास होते हैं। उदाहरण के लिए जलधिवास के तहत मूर्ति को जल से भरे विशाल पात्रों में शयन कराया जाता है।
इसी तरह दिन में गेहूं, धान आदि अन्न के भंडार में ढककर अन्नाधिवास होता है। औषधियों में रखकर औषधिवास होता है। शैयाधिवास में उन्हें शैया पर शयन कराया जाता है।
अरणि मंथन यंत्र
अयोध्या में प्राण-प्रतिष्ठा के लिए हो रहे अनुष्ठान में यज्ञ कुंडों में अग्नि काशी में बनी अरणि मंथन यंत्र से प्रकट होगी।वैदिक यज्ञों में अग्नि प्राकट्य के लिए काठ के बने अरणि मंथन यंत्र का प्रयोग करते हैं। इसके मुख्य दो भाग अरणि या अधराणि और उत्तराणि को मिलाकर कुल चार अंग होते हैं। यह शमीगर्भ अश्वत्य यानी शमी के काष्ठ से बनाया जाता है। अधराणि नीचे होती है और इसमें छिद्र होता है।
अयोध्या का पुराना नाम क्या है?
ऐतिहासिक रूप से अयोध्या को साकेत के नाम से जाना जाता था जो सभ्य भारत में छठी शताब्दी के दौरान एक महत्वपूर्ण शहर था। दरअसल, बुद्ध के समय साकेत पर प्रसेनदी का शासन था जिसकी राजधानी श्रावस्ती थी।
अयोध्या का पहला राजा कौन था?
किसने की अयोध्या की स्थापना? सरयू नदी के तट पर बसे इस नगर की रामायण अनुसार विवस्वान (सूर्य) के पुत्र वैवस्वत मनु महाराज द्वारा स्थापना की गई थी। माथुरों के इतिहास के अनुसार वैवस्वत मनु लगभग 6673 ईसा पूर्व हुए थे। ब्रह्माजी के पुत्र मरीचि से कश्यप का जन्म हुआ।
अयोध्या में कौन सी चीज प्रसिद्ध है?
अयोध्या में शीर्ष दर्शनीय स्थल हैं राम जन्मभूमि, कनक भवन, नागेश्वरनाथ मंदिर, हनुमान गढ़ी, अयोध्या, गुलाब बाड़ी, त्रेता के ठाकुर।
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