Mahashivratri 2023: फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि (18 फरवरी) को महाशिवरात्रि मनाई जाती है. इस दिन भोले के भक्त उन्हें खुश करने के लिए बड़ी संख्या में शिवालयों में पहुंचते हैं. जब-जब शिव के प्रिय स्थानों की बात होती तब-तब हिमालय की गोद में बसे देवभूमि उत्तराखंड की बात होती है. कहा जाता है कि उत्तराखंड के कोने-कोने में देवता विराजते हैं और यहां बाबा केदारनाथ के अलावा भी कई शिवालय हैं.
जो धार्मिक मान्यताओं के प्रमुख केंद्र हैं. गढ़वाल इलाके में स्थापित पांच मंदिरों में भगवान शिव के अलग-अलग अंगों की पूजा-अर्चना होती है, जो मिल कर पंचकेदार कहलाते हैं. मान्यता है कि नेपाल के पशुपतिनाथ समेत पंच केदार की यात्रा के बाद ही द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक केदारनाथ की पूजा पूर्णता को प्राप्त करती है. क्या है पंचकेदार की पौराणिक और धार्मिक मान्यता, जानिए.
मद्महेश्वर तुंग ईश्वर, रुद कल्प महेश्वरम । पंच धन्य विशाल आलय,जय केदार नमाम्यहम… दरअसल पंचकेदार पांच शिव मंदिरों का सामूहिक नाम है और इसका वर्णन स्कंद पुराण के केदारखंड में वर्णित है. पंचकेदार में पहले केदार के रूप केदारनाथ मंदिर है. द्वितीय केदार के रूप में भगवान मदमहेश्वर, तृतीय केदार के रूप में भगवान तुंगनाथ, चतुर्थ केदार के रूप में भगवान रुद्रनाथ और पांचवे केदार के रूप में कल्पेश्वर की पूजा होती है.
सभी पंचकेदार भगवान शिव के पवित्र स्थान हैं, जहां भगवान शंकर के विभिन्न विग्रहों की पूजा होती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पंचकेदार की मान्यता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडव अपने गुरु, कुल, ब्राह्मणों और भ्रातृहत्या (भाइयों की हत्या) के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे. इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे. ऐसा करने की सलाह उन्हें श्री कृष्ण ने दी थी(Mahashivratri 2023).
दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर
तृतीय केदार के रूप में जाने जाने वाले तुंगनाथ में भगवान शिव की भुजा के रूप में आराधना होती है. पंचकेदार में से एक तुंगनाथ कई मायनों में खास है. यह मंदिर दुनिया की सर्वोच्च ऊंचाई पर बना शिव मंदिर है. मंदिर समुद्र तल से 3680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. तुंगनाथ मंदिर चंद्रशिला चोटी के नीचे बना है, जो प्राकृतिक सौंदर्यता का अद्भुत प्रतीक है(Mahashivratri 2023).
धार्मिक मान्यता के साथ-साथ तुंगनाथ एडवेंचर के शैकीनों के बीच काफी प्रचलित है. जहां हर साल बड़ी संख्या में लोग ट्रैक करने पहुंचते हैं. शीतकाल में यहां भी छह माह कपाट बंद होते हैं. इस दौरान मक्कूमठ में भगवान तुंगनाथ की पूजा होती है.
जब बैल का रूप धारण कर विलुप्त हो गए थे शिव(Mahashivratri 2023)
लेकिन भगवान शिव पांडवों द्वारा किये गए कृत्यों से नाराज थे और उन्हें इतनी जल्दी दोषमुक्ति नहीं देना चाहते थे. जब पांडव शिव की तलाश में काशी पहुंचे तो शिव उनसे बचने के लिए हिमालय की ओर चले आये. नारद से इस बात की खबर मिली तो पांडव भी उनका पीछा करते हुए उत्तराखंड आ पहुंचे. लेकिन भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे(Mahashivratri 2023).
इसी दौरान पांडवों ने देखा कि एक बुग्याल में गाय-बैलों में से एक बैल बाकियों से कुछ अलग है. पांडवों को शक हुआ तो भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर लिया और दो पहाड़ों के बीच अपना पैर फैला दिया. सभी गाय-बैल पैर के नीचे से चले गए, लेकिन भगवान शंकर रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुआ.
इस बीच भीम बैल पर झपटा मार पकड़ने की कोशिश करने लगे तो शिव ने जमीन में गड्ढा किया और जमीन में विलुप्त होने लगे. तब भीम ने बैल की त्रिकोण रूपी पीठ के भाग पकड़ लिया. उसी समय से भगवान शंकर की बैल की पीठ की आकृति पिंड के रूप में केदारनाथ में पूजी जाती है. जिसे पहले केदार के रूप में जाना जाता है.
12 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ मंदिर रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है. जो चार धाम में से भी एक है. माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए तो उनके धड़ से ऊपर का भाग आज के नेपाल के काठमांडू में प्रकट हुआ. जो पशुपतिनाथ मंदिर के रूप में जाना जाता है(Mahashivratri 2023).
पंचकेदार के सिर्फ एक मंदिर में होते पूरे साल दर्शन
पंचम केदार के रूप में कल्पेश्वर मंदिर विख्यात हैं. इसे कल्पनाथ नाम से भी जाना जाता है. यहां भगवान शिव की जटाओं की पूजा की जाती है. पंचकेदार में से कल्पेश्वर ही एक मात्र केदार है जो श्रद्धालुओं के लिए सालभर खुला रहता है. शीतकाल में भी भक्त यहां आकर बाबा भोलेनाथ के दर्शन कर सकते हैं. मान्यता है कि इस स्थल पर दुर्वासा ऋषि ने कल्प वृक्ष के नीचे घोर तपस्या की थी.
कल्पेश्वर मंदिर चमोली जिले की उर्गम घाटी में स्थित है. कल्पेश्वर मंदिर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को 10 किलोमीटर तक पैदल चलना होता है. इस ट्रैक पर सुंदर प्राकृतिक नजारे, झरने आदि देखने को मिलते हैं(Mahashivratri 2023).
इस मंदिर में होती है शिव की नाभि की पूजा
द्वितीय केदार के रूप में भगवान मदमहेश्वर या मध्यमहेश्वर को पूजा जाता है. यहां बैल रूपी शिव के मध्य भाग (नाभि) की पूजा की जाती है. मदमहेश्वर मंदिर चारों तरफ से चौखंबा के विशाल पर्वतों से गिरा है, जिसकी सुंदरता देखते बनती है. भगवान शिव के इस मंदिर के कपाट भी निश्चित समय के लिए खुलते हैं.मध्यमहेश्वर मंदिर के कपाट अक्षय तृतीया पर खुलते हैं और दीवाली के बाद सर्दियों के समय बंद हो जाते हैं. शीतकाल में जब कपाट बंद होते हैं तो ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में भगवान मद्महेश्वर का निवास स्थान होता है(Mahashivratri 2023).
रुद्रनाथ में होती है शिव के मुख की पूजा
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चतुर्थ केदार रुद्रनाथ चमोली जिले में स्थित है. समुद्रतल से 3554 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रुद्रनाथ मंदिर भव्य प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण है. रुद्रनाथ मंदिर में भगवान शंकर के एकानन यानि मुख की पूजा की जाती है. इसके साथ ही नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में चतुरानन रूप और इंडोनेशिया में भगवान शिव के पंचानन विग्रह रूप की पूजा होती है. शीतकाल में मंदिर के कपाट बंद होते हैं इस कारण गोपेश्वर में भगवान रुद्रनाथ की पूजा-अर्चना होती है.(Mahashivratri 2023)